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Saturday, October 31, 2020

राज्यों के टूटने-बनने का दिन; दिल्ली तो 64 साल से लड़ रहा है राज्य बनने के लिए


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वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा


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Friday, October 30, 2020

फ्रांस में एक दिन में 49 और इटली में 31 हजार केस, बेल्जियम में सोमवार से कर्फ्यू लगेगा

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दुनिया में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4.58 करोड़ से ज्यादा हो गया है। 3 करोड़ 32 लाख 37 हजार 845 मरीज रिकवर हो चुके हैं। अब तक 11.93 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ये आंकड़े https://ift.tt/2VnYLis के मुताबिक हैं। यूरोपीय देश संक्रमण की दूसरी लहर से सहम गए हैं। फ्रांस में शुक्रवार को फिर एक दिन में करीब 50 हजार मामले सामने आए। इटली में संक्रमण की दूसरी लहर भी जानलेवा साबित हो रही है। यहां 24 घंटे में 31 हजार मामले सामने आए। बेल्जियम सरकार ने दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है। उसने कहा है कि सोमवार से लॉकडाउन लगाया जाएगा।

फ्रांस में मुश्किल जारी
फ्रांस में सरकार ने लॉकडाउन लगाया। इसके बावजूद यहां संक्रमण कम होता नजर नहीं आता। हालांकि, हेल्थ मिनिस्ट्री ने उम्मीद जाहिर की है कि इसे जल्द काबू में लाया जा सकेगा। लॉकडाउन और प्रतिबंधों का असर अगले कुछ दिनों में देखने मिल सकता है। फ्रांस में शुक्रवार को 49,215 नए केस दर्ज किए गए। इसी दौरान 256 संक्रमितों की मौत हो गई। अब तक यहां कुल 36 हजार 565 लोगों की मौत हो चुकी है। कुल मामले 13 लाख 31 हजार 984 हैं।

पेरिस के एक हॉस्पिटल में मरीज को वॉर्ड में शिफ्ट करने ले जाता स्टाफ। फ्रांस में एक महीने का लॉकडाउन लगाया गया है। हालांकि, फिलहाल यहां संक्रमण कम नहीं हुआ है।

इटली में दूसरी लहर
इटली सरकार ने एक बयान जारी कर माना है कि देश में संक्रमण की दूसरी लहर चल रही है और अब यह घातक साबित होने लगी है। शुक्रवार को यहां कुल 31 हजार 84 मामले सामने आए। इसके पहले यानी गुरुवार को यह संख्या 27 हजार थी। यानी एक दिन में 4 हजार मामले बढ़ गए। मरने वालों का आंकड़ा भी सीधे 200 पर पहुंच गया। देश में 1765 मरीजों की हालत गंभीर बताई गई है।

बेल्जियम में कर्फ्यू
तमाम विरोध के बावजूद बेल्जियम सरकार ने साफ कर दिया है कि वो झुकने वाली नहीं है और सोमवार से देश में नेशनल लॉकडाउन से भी सख्त कर्फ्यू लगाया जाएगा। किसी भी घर में एक से ज्यादा मेहमान नहीं जा सकेगा और इसकी भी जानकारी हेल्थ अथॉरिटी को देनी पड़ेगी। स्कूलों में परीक्षाएं 15 नवंबर तक टाल दी गई हैं। वर्क फ्रॉम होम ही किया जा सकेगा। सरकारी अधिकारियों और स्टाफ को ऑफिस आने की मंजूरी दी जाएगी। लेकिन, उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव होनी चाहिए।

इंग्लैंड में भी लॉकडाउन
बेल्जियम और दूसरे यूरोपीय देशों की तर्ज पर इंग्लैंड में भी लॉकडाउन की तैयारी हो चुकी है। ये अगले हफ्ते से लगाया जाएगा। हालांकि, इसका औपचारिक ऐलान बाद में किया जाएगा। खास बात ये है कि पीएम बोरिस जॉनसन की पार्टी के ही कुछ लोग विपक्ष के साथ इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन, मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि जॉनसन ने अपने साइंस एडवाइजर की राय को ही तवज्जो दी है। यहां 24 घंटे में 274 नए मामले सामने आए जबकि 274 लोगों की मौत हो गई।

इंग्लैंड में सरकारी सूत्रों ने बताया है कि यहां जल्द ही लॉकडाउन लगाया जा सकता है। इसके संकेत मिलते ही यहां विरोध भी शुरू हो गया है। बर्मिंघम के एक पार्क में शुक्रवार को रैली हुई।

यूरोपीय देशों की कोशिश
यूरोपीय देशों में एक देश के मरीज दूसरे देश के अस्पतालों में शिफ्ट किए जा सकेंगे। इसके लिए स्पेशल फंड ट्रांसफर स्कीम भी लॉन्च की गई है। इसे बारे में यूरोपीय देशों ने एक समझौता किया है। फ्रांस और जर्मनी के अलावा स्पेन में भी नए मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और इसकी वजह से यहां सरकारें अलर्ट पर हैं। मरीजों को ट्रांसफर करना यूरोपीय देशों में मुश्किल भी नहीं होगा क्योंकि ज्यादातर देश छोटे हैं और इनकी ओपन बॉर्डर हैं। सड़क के रास्ते भी आसानी से एक देश से दूसरे देश में जाया जा सकता है। ईयू कमिशन की हेड वॉन डेर लेन ने कहा- वायरस तेजी से बढ़ रहा है और इससे निपटने के लिए सहयोग जरूरी है। हमारी कोशिश है कि हेल्थ केयर सिस्टम पहले की तरह मजबूती से काम करता रहे।



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बेल्जियम सरकार ने साफ कर दिया है कि तमाम विरोध के बावजूद वो झुकने को तैयार नहीं है और देश में सोमवार से लॉकडाउन लगाया जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स में इसे कर्फ्यू कहा गया है। हालात से निपटने के लिए देश के ज्यादातर हिस्सों में पुलिस तैनात कर दी गई।


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आतंकियों ने दो परिवारों के इकलौते बेटे छीने; लोग गुस्से में हैं और नेता खौफजदा


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इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद के भयावह 12 घंटे; सरदार पटेल का जन्मदिन भी


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यूएई में सड़कों से लेकर कारखानों तक बिहार चुनाव की चर्चा, यहां रह रहे बिहारी चाहते हैं राज्य में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बने

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(शानीर एन सिद्दीकी) इस वक्त हम मौजूद हैं दुबई के यूपी एन बिहार रेस्त्रां में। यहां गेट पर खड़े युवक नीतीश और तेजस्वी की जीत-हार का हिसाब-किताब लगा रहे हैं। इसी तरह की चर्चाएं यूएई की सड़कों से लेकर कारखानों तक आम हैं।

एक अनुमान के मुताबिक, यहां बिहार के 5 लाख लोग काम करते हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हर साल वर्क वीसा पर बिहार से 70 हजार लोग यहां आते हैं और ये लोग बिहार की इकोनॉमी में सालाना दो हजार करोड़ रुपए का योगदान देते हैं।

विदेश में रहने वालों का डेटा रखा जाए

दुबई में इंजीनियरिंग कंपनी सिवान टेक्निकल कॉन्ट्रैक्टिंग और यूपी एन बिहार रेस्त्रां के मालिक अनुज सिंह भी नई सरकार से उम्मीदें लगाए बैठे हैं। वे बताते हैं कि उनकी नई सरकार से मांग है कि विदेशों में रह रहे लोगों का डेटा रखा जाए। इसके लिए नीतीश सरकार ने बिहार फाउंडेशन के तहत एक अच्छी शुरुआत की थी, पर यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी। वहीं, आयल एंड गैस इंजीनियर नवीन चंद्रकला कुमार बताते हैं कि बिहार से आने वाले ब्लू कॉलर वर्कर की तीन सबसे बड़ी जरूरत सावधानी, सुरक्षा और सहायता है।

वे कहते हैं कि एक राज्य से हर साल लाखों लोग काम करने विदेश जाते हैं और राज्य में कोई अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट नहीं है। यदि राज्य का अपना एयरपोर्ट होगा तो प्रशासन नए जाने वाले वर्कर को सूचना दे सकता है कि विदेश में कोई समस्या आने पर किससे और कैसे संपर्क करे।

इस पर निगाह रखी जा सकती है कि जाने वाला सही वीसा पर जा रहा है या नहीं। किस एजेंट के जरिए जा रहा है, उसका भी रिकॉर्ड रख सकते हैं। एजेंटों के रजिस्ट्रेशन की एक व्यवस्था राज्य सरकार को तुरंत शुरू कर देनी चाहिए। इससे बहुत सारे फ्राॅड रोके जा सकते हैं। पटना एयरपोर्ट, दरभंगा एयरपोर्ट और गया एयरपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की शुरुआत करनी चाहिए। इसमें राज्य सरकार के राजस्व, टैक्स और विदेशी मुद्रा के रूप में मदद भी होगी।

बिहार में राजनीति हमेशा मुद्दों से हटकर होती है

फुलवारी शरीफ के रहने वाले और फ्रेंच कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर कार्यरत इरफानुल हक बताते हैं कि दुबई में बैठ कर हम सिर्फ अनुमान ही लगा सकते हैं कि इस बार चुनाव में क्या होने जा रहा है। पर बिहार में राजनीति हमेशा असल मुद्दों से हट कर होती है।

उम्मीद है कि नई सरकार शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं को तरजीह देगी। विकसित राज्यों की तर्ज पर बिहार में भी नए उद्योगों के लिए फ्री जोन बनाएगी। राज्य में निवेश करने वाले बिहारी उद्योगपतियों को टैक्स में छूट, सुरक्षा की गारंटी, कारोबार में आसानी जैसी नीतियां लागू करेगी। नई सरकार निवेश के लिए नया मंत्रालय भी बना सकती है जो की विदेश में रह रहे अप्रवासी बिहारी समाज के साथ मिल कर काम कर सकता है।

हालांकि यहां रह रहे लोगों को चुनाव का हिस्सा न बन पाने का भी मलाल है। अनुज बताते हैं कि यहां चुनाव पर बहस और चर्चा का ऐसा माहौल बनता जा रहा है कि जैसे बिहार में ही बैठे हों। परिवार वालों से फोन और न्यूज चैनलों के जरिए लोग चुनाव की हर जानकारी जुटा रहे हैं। यदि सरकार और हाई कमीशन व्यवस्था करेगा तो वोटिंग के लिए लंबी कतारें दिखेंगी।



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एजेंटों का धोखा और वीसा फ्रॉड यह मजदूर और टेक्निकल वर्ग की मुख्य समस्या रही है। लोग चाहते हैं कि प्रवासी मजदूरों के हितों की सुरक्षा के लिए विशेष मंत्रालय बने और इनका डेटा रखा जाए।
Discussion of Bihar elections from roads to factories in UAE, Bihari living here wants international airport in the state


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ट्रम्प के दौर में अमेरिका ने अपना सम्मान खो दिया, उनकी फैमिली सेपरेशन पॉलिसी बहुत क्रूर रही

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ये कैटलॉग तैयार करना भी बेहद मुश्किल काम है कि डोनाल्ड ट्रम्प के चार साल राष्ट्रपति रहने के दौरान हमने क्या-क्या गंवाया। जब मैं इन बातों को लिख रहा हूं तब तक कोरोनावायरस के चलते 2 लाख 25 हजार अमेरिकी नागरिक मौत का शिकार बन चुके हैं। महीनों से हमारे यानी अमेरिकी बच्चे स्कूल नहीं गए हैं। बहुत जल्द देश का बड़ा हिस्सा थैंक्सगिविंग भी सेलिब्रेट नहीं कर पाएगा।

बच्चों को परिवार से जुदा कर दिया
ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन ने क्रूर फैमिली सेपरेशन पॉलिसी बनाई। बहुत मुमकिन है कि इसका शिकार बने 545 बच्चे अब कभी अपने पैरेंट्स से न मिल पाएं। अग्रणी लोकतंत्र के तौर पर अमेरिका अपना रुतबा और सम्मान खो चुका है। हमने सुप्रीम कोर्ट की जज रूथ बेंदर गिन्सबर्ग को खोया। सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यह पहला मौका जब इतने अमेरिकियों ने नौकरियां गंवाईं। इनके साथ उन सांस्कृतिक घटनाओं को हुआ नुकसान भी जोड़ लीजिए, जो ट्रम्प के दौर में हुआ।

पिछले चार साल का अनुभव
जब मैं पिछले चार साल अपनी तरह से देखता हूं तो उसमें ऐसा लगता है कि जैसे इस प्रेसिडेंट का दौर किसी ब्लैकहोल की तरह रहा। अपनी तरह के और अलग नुकसान हुए। हर वक्त यह महसूस हुआ कि ट्रम्प अपनी तरह की बातें गढ़ते हैं और तारीफ किसी और चीज की करते हैं। मुझे लगता है कि पिछले चार साल में काफी बेहतर हुआ होगा। लेकिन, इसमें से ज्यादातर का फायदा मुझे नहीं हुआ। क्योंकि, मैं अपने फोन में ही बिजी रहा। ये उस आदमी के साथ होता है जो पॉलिटिक्स में जिंदगी खोजता रहा। ऐसा मैं अकेला नहीं हूं।

कई किताबें लिखी गईं
इस दौर में कई किताबें लिखी गईं। ट्रम्प पर उनके दौर का जिक्र करते हुए। पुलित्जर प्राइज विनर आलोचक कार्लोस लोजदा कहते हैं- ट्रम्प के दौर में कई राजनीतिक किताबें लिखी गईं। मैंने भी इनमें से कई किताबें पढ़ीं और उनकी तारीफ भी की। 2015 के बाद से फिक्शन पर नॉन फिक्शन भारी हो गया। यह बदलाव ट्रम्प के सत्ता में आने से पहले ही नजर आने लगा था। लेकिन, चार साल में तो यह चरम पर पहुंच गया। एनपीडी की क्रिस्टीन मैक्लीन कहती हैं- ट्रम्प ने हमारे दिमाग में जगह बना ली और वहां इतनी भीड़ है कि हम कुछ और सोच नहीं पाते।

फिक्शन पर जोर
एक लेखक पूछते हैं- यह सब क्या चल रहा है और कब खत्म होगा। यह तो उससे बहुत अलग है जिसकी हम बतौर अमेरिकी कल्पना करते आए हैं। हम दुनिया में रहना चाहते हैं लेकिन अब यह सोच जैसे सस्पेंड हो रही है। ट्रम्प के पहले मैंने कभी नहीं सोचा कि जिंदगी का यह हिस्सा फास्ट फॉरवर्ड हो और गुजर जाए। इस दौर में टीवी ड्रामा ही बेहतर हैं क्योंकि सच्चाई बहुत जहरीली होती जा रही है। तब बहुत अच्छा लगता जब आर्ट और पॉलिटिक्स में सामंजस्य हो। लेकिन, जब सियासित आपको चेतावनी देने लगे तो संस्कृति भी मुश्किल में दिखाई देने लगती है। इस दौर में आर्ट तबाह हुआ। इसके लिए ट्रम्प जिम्मेदार हैं।

संस्कृति का दम घुट रहा है
चाहे दक्षिणपंथी हों या वामपंथी। ये मिले हुए हैं और इस दौर में सांस्कृतिक तौर पर दम घुट रहा है। परंपरावादी डेमोक्रेट्स का मजाक उड़ाते हैं और वे ट्रम्प के साथ हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी के घर में आग लगाकर हम हंसने लगें। उसके जख्मों पर नमक छिड़कें। ट्रम्प के दौर में क्रिएटिविटी के लिए जगह नहीं बची। इसके लिए राष्ट्रपति जिम्मेदार हैं, वे लोग नहीं जिन्होंने इसका खामियाजा भुगता।

रोशनी की गुंजाइश नहीं छोड़ी
ट्रम्प का दौर कला यानी आर्ट के लिए अच्छा नहीं रहा। यह कल्पना के लिए भी खराब वक्त था। लोगों को अब आगे आना होगा। इस परेशानी से बाहर निकलने की कोशिश करनी होगी। इसके लिए ज्यादा ताकत और ऊर्जा लगानी होगी। ट्रम्प ने रोशनी को रोका है। जब वो चले जाएंगे तब हम देख पाएंगे कि हमने कितना और क्या खोया है।



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Donald Trump Four Wasted Years of Americans; Here's New York Times (NYT) Opinion On US Election 2020


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