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Thursday, April 30, 2020
कोरोना पर दिल्ली ने बदली रणनीति, हॉटस्पॉट जोन में अब 14 दिन में 3 बार स्क्रीनिंग
फरीदाबाद के बाद आज से दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर भी सील, सिर्फ इन्हें मिलेगी एंट्री
Horoscope Today, 1 May: जानें कैसा रहेगा आज आपका दिन?
मरीज बनकर एंबुलेंस से गया गाजियाबाद, निकाह करके ले आया दुल्हन
महाराष्ट्र: CM की कुर्सी बचा पाएंगे राज्यपाल? SC पहुंच सकता है केस
इंसानी त्वचा के लिए खतरनाक है डिसइन्फेक्शन टनल, हो सकता है कैंसर
अब तक 34 हजार 862 केस: महाराष्ट्र में मरीजों की संख्या 10 हजार के पार, दिल्ली में 6 और सीआरपीएफ जवान संक्रमित मिले
J-K: बॉर्डर पर बौखलाया पाकिस्तान, फायरिंग में भारतीय नागरिक की मौत पाकिस्तान बॉर्डर पर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. गुरुवार को जम्मू और कश्मीर के पुंछ सेक्टर... https://ift.tt/2yfajviJ-K: बॉर्डर पर बौखलाया पाकिस्तान, फायरिंग में भारतीय नागरिक की मौत पाकिस्तान बॉर्डर पर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. गुरुवार को जम्मू और कश्मीर के पुंछ सेक्टर... https://ift.tt/2yfajvi
लखनऊ हत्याकांड में खुलासा, संपत्ति विवाद में बाप-बेटे ने किया 6 लोगों का कत्ल आरोपी अजय सिंह ने पुलिस को बताया कि उसके पिता अमर सिंह उसके भाई की पत्नी को अपने साथ ही... https://ift.tt/35ldb5Sलखनऊ हत्याकांड में खुलासा, संपत्ति विवाद में बाप-बेटे ने किया 6 लोगों का कत्ल आरोपी अजय सिंह ने पुलिस को बताया कि उसके पिता अमर सिंह उसके भाई की पत्नी को अपने साथ ही... https://ift.tt/35ldb5S
अलग किस्म के अभिनेता थे ऋषि कपूर, 'ना' से होती थी 'हां' की शुरुआत
भारत में हर 10 कैंसर मरीजों में से 7 की मौत हो जाती है, यहां एक डॉक्टर पर 2000 मरीजों का बोझ होता है
वैष्णोदेवी में 35 पुजारियों को अनुमति, अब बारी-बारी से पांच-पांच करते हैं पूजा; 27 किमी लंबे पूरे ट्रैक का सैनिटाइजेशन कराया
देश की पहली काेराेना मरीज उषा ने कहा- संक्रमण हुआ तो डर नहीं लगा, तीन हफ्ते में ही ठीक हो गई थी
दुनिया में 32 लाख से ज्यादा संक्रमित और 2.23 लाख से ज्यादा मौतों के बावजूद 32 देश ऐसे, जहां कोरोनावायरस नहीं पहुंचा
दुनिया में 32 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमण और 2.23 लाख से ज्यादा मौतों के बावजूद 32 देश ऐसे हैं, जहां कोरोनावायरस नहीं पहुंच पाया है। वहां कोरोना का एक भी मामला नहीं मिला है। हालांकि, उत्तर कोरिया पर संशय हो सकता है। 29 अप्रैल तक की स्थिति में 247 देशों में से 215 में कोरोना फैल चुका है। ताजा नाम तजाकिस्तान का है, जहां गुरुवार को पहला मामला सामने आया।
9 देशों की आबादी एक लाख से ज्यादा
जिन 32 देशों में कोरोना अभी तक नहीं पहुंच पाया है, उनमें से 9 देशों की आबादी एक लाख से ज्यादा है। सबसे ज्यादा 2.57 करोड़ आबादी उत्तर कोरिया की है। हालांकि, वह चीन के करीब है और वहां की ज्यादा जानकारी बाहर नहीं आ पाती। ऐसे में वहां के आंकड़ों की जानकारी को लेकर संशय की स्थिति है। सबसे कम आबादी कोकोस आइलैंड की है।
ज्यादा आबादी वाले देश
- उत्तर कोरिया- जनसंख्या 2.6 करोड़
- तुर्कमेनिस्तान-जनसंख्या 60 लाख
- लीसोथो-जनसंख्या 21.4 लाख
- कोमोरोस-जनसंख्या 8.7 लाख
- माइक्रोनेशिया-जनसंख्या 5.5 लाख
कम आबादी वाले देश
- कोकोस आइलैंड- जनसंख्या 596
- तोकलाऊ- जनसंख्या 1357
- क्रिसमस आइलैंड- जनसंख्या 1402
- नियू आइलैंड- जनसंख्या 1626
- सेंट हेलेना- जनसंख्या 6077
इन 5 देशों ने संक्रमण पूरी तरह खत्म किया
- अंगुला, ग्रीनलैंड, कैरिबियन आइलैंड, सेंट बार्ट्स एंड सेंट लूसिया और यमन।
- 214 में से 166 देशों में कोरोना की वजह से कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई।
- ओशिनिया में 29 देशों और क्षेत्रों में से केवल 8 में संक्रमण के मामले आए हैं।
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J-K: बॉर्डर पर बौखलाया पाकिस्तान, फायरिंग में भारतीय नागरिक की मौत
Wednesday, April 29, 2020
Horoscope Today, 30 April: जानें कैसा रहेगा आज आपका दिन?
US में मौत के आंकड़ों में फिर उछाल, 24 घंटे में 2502 लोगों की गई जान
जब इरफान को कहा मिथुन जैसे दिखते हो, करा लिया था उनके जैसा हेयरस्टाइल
मुंबई में BMC कर्मचारी की कोरोना से मौत, अब तक 270 लोगों की गई जान
भिवंडी से पैदल नेपाल-UP जा रहे मजदूर, बोले- यहां रहे तो मर जाएंगे
पान मसाला, च्यूइंगम के उत्पादन और बिक्री पर रोक; गृह मंत्रालय ने कहा- नई गाइड लाइन 4 मई से लागू होंगी, जल्द ऐलान किया जाएगा
कोरोना वर्ल्ड वॉर-3 से कम नहीं है, हम कई चुनौतियों को पार करते आए हैं, हम इसे भी पार कर लेंगे: श्री श्री
अमेरिका के सबसे बड़े मॉल ऑपरेटर ने कहा- कल से 10 राज्यों में खुलेंगे 49 मॉल
(सपना माहेश्वरी और माइकल कोकरी)कोरोनावायरस महामारी ने अब तक सबसे ज्यादा तबाही अमेरिका में मचाई है। यहां संक्रमित लोगों की संख्या 10 लाख के पार हो गई है। मरने वालों का आंकड़ा भी 60 हजार के करीब है। लेकिन, अमेरिका महामारी से जंग के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को भी खोलने की कोशिश में लगा है। देश के सबसे बड़े मॉल ऑपरेटर सिमन प्रॉपर्टी ग्रुप ने कहा है कि वह शुक्रवार से करीब 10 राज्यों में अपने मॉल खोलने की शुरुआत कर रहा है। यह ग्रुप इन राज्यों में कुल 10 मॉल खोलेगा।
गाइडलाइन भी तैयार
सिमन प्रॉपर्टी ग्रुप ने मॉल खोलने को लेकर अपनीगाइडलाइन भी तैयार कर ली है। मॉल के सिक्युरिटी ऑफिसर्स और यहां काम करने वाले कर्मचारी ग्राहकों को सोशल डिस्टेंसिंग और हाइजीन के बारे में नियमित तौर पर बताते रहेंगे। मॉल के अंदर खेलने वाले एरिया और पीने के पानी के नल फिलहाल बंद रहेंगे। वॉशरूम में हर एक सिंक के बाद दूसरे सिंक पर टेप लगा होगा। यानी अगर कोई एक सिंक चालू है तो उसके ठीक पास वाला सिंक बंद रहेगा। यूरिनल के साथ भी ऐसा ही किया जाएगा। ग्रुप ने अपनी इस योजना का डॉक्यूमेंट 27 अप्रैल को एक मेमो के जरिए अथॉरिटीज तक पहुंचाया है।
योजना की सफलता रिटेलर्स और उपभोक्ताओं के ऊपर भी निर्भर
हालांकि, इस योजना की सफलता मॉल ऑपरेटर के साथ-साथ रिटेलर्स और उपभोक्ताओं के ऊपर भी निर्भर करेगी। यह देखना है कि मॉल खुलने के बाद कितने दुकानदार अपनी दुकानें खोलते हैं और खरीदारी के लिए कितने लोग वहां पहुंचते हैं। इन मॉल्स में दुकानों की चेन चलाने वाली कंपनी गैप ने कहा है कि वह इस हफ्ते के आखिर तक अपनी दुकानें नहीं खोलेगी। एक अन्य बड़ी किराएदार कंपनी मैकीज ने भी कहा है कि उसकी दुकानें फिलहाल नहीं खुलेंगी।
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अमेरिका में 14 साल पहले दो वैज्ञानिकों ने पहली बार बुश सरकार के सामने सोशल डिस्टेंसिंग नीति बनाने का प्रस्ताव रखा था, पर अधिकारियों ने खिल्ली उड़ा दी थी
एरिक लिप्टन और जेनिफर स्टीनहाऊर. कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित देश अमेरिका है। अब तक 60 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। यदि 14 साल पहले कुछ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग कानून (फेडरल पॉलिसी) के प्रस्ताव को खारिज न किया जाता तो...इस मौत की त्रासदी को रोका जा सकता था।
ऐसा (उपरोक्त बातें) अमेरिका के दो वरिष्ठ सरकारी चिकित्सक डॉ. रिर्चड हैशे और डॉ. कार्टर मेकर का कहना है। वर्तमान में डॉ. हैशे कैंसर विशेषज्ञ सलाहकार के तौर व्हाइट हाउस में, जबकि डॉ. मेकर वेटरन्स अफेर्यस विभाग में एक चिकित्सक के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। दोनों ने न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार से अमेरिका में सोशल डिस्टेंसिंग नीति के जन्म और उसके खारिज होने की कहानी को साझा किया।
पढ़िए डॉ. हैशे और डॉ. मेकर की जुबानी...सामाजिक दूरी के जन्म की अनकही कहानी...
- अधिकारियों ने सोशल डिस्टेंसिंग नीति के प्रस्ताव की खिल्ली उड़ाई, कहा- घर में दुबकने से बेहतर है महामारी की दवा खोजी जाए
डॉ. मेकर कहते हैं कि यह करीब 14 साल पहले की बात होगी। मैं और डॉ. हैशे वॉशिंगटन के उपनगरीय स्थित एक बर्गर शॉप में अपने कुछ सहयोगियों के साथ मुलाकात करने गए। वह मुलाकात दरअसल उस (सोशल डिस्टेंसिंग) प्रस्ताव की अंतिम समीक्षा से जुड़ी थी, जिसमें यह तय किया जाना था कि अगली बार अमेरिका पर अगर किसी विनाशकारी महामारी का हमला होता है, तो लोग सामाजिक दूरी बनाएंगे और घर से ही काम करेंगे। जब हमने यह प्रस्ताव पेश किया तो वरिष्ठ अधिकारियों ने न सिर्फ इसे शक की नजर से देखा, बल्कि इस प्रस्ताव की खिल्ली भी उड़ाई। अन्य अमेरिकियों की तरह समीक्षा करने आए अधिकारियों ने भी दवा उद्योग के प्रति आश्वस्त दिखे। उनका जोर किसी भी महामारी से बचने के लिए घरों में दुबक कर बैठ जाने से बेहतर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करते हुए इलाज के नए तरीके ईजाद करने पर था।
- किसी भी महामारी से बचने का सबसे अच्छा इलाज सोशल डिस्टेंसिंग है, लेकिन इसे अव्यावहारिक और गैर जरूरी बताया गया
डॉ. हैशे कहते हैं कि कोरोना वायरस पूरे विश्व के लिए बिल्कुल नया है। ये कहां से आया है? कैसे रुकेगा? इसका इलाज क्या है? किसी के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं है। लेकिन एक बात सौ फीसद सही साबित हो गई है कि इसे सोशल डिस्टेंसिंग से ही रोका जा सकता है। जिन देशों में इस पर थोड़ा या ज्यादा काबू पाया गया है, वहां पर यही हथियार अपनाया गया है। किसी भी महामारी से बचने का सबसे अच्छा इलाज सोशल डिस्टेंसिंग ही है। इसमें जान जाने की दर बहुत कम होती है। मैं और डॉ. मेकर इसी बात पर जोर दे रहे थे। जिस सोशल डिस्टेंसिंग से लोग आज परिचित हैं या फिर हो रहे हैं, दरअसल इसे मध्यकाल से ही में अपनाया जा रहा है। 2006-07 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की पहल पर हमने एक प्रस्ताव रखा था कि देश में अगली संक्रामिक बीमारी से मुकाबला करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता, लेकिन संघीय नौकरशाहों ने तब इसे अव्यावहारिक, गैर जरूरी और राजनीतिक रूप से असंभव (नॉन फिजिबल) कहकर नकार दिया था।
- दोस्त डॉ. ग्लास की 14 वर्षीय बेटी ने स्कूल में सोशल डिस्टेंसिंग पर बनाया था साइंस प्रोजेक्ट उसी से मिला आइडिया
डॉ. मेकर कहते हैं कि इनफ्लुएंजा के नए प्रकोप और टेमीफ्लू जैसी दवा के सभी संक्रामक बीमारियों में कारगर न होने की सच्चाई को देखते हुए डॉ. हैशे और मैं अपनी टीम के साथ बड़े पैमाने के संक्रमण का मुकाबला करने के लिए अन्य तरीके की खोज में लगे हुए थे। उसी दौरान न्यू मैक्सिको स्थित सैंडिया नेशनल लेबोरेट्री में वरिष्ठ वैज्ञानिक रॉबर्ट ग्लास जो कि मेरे अच्छे दोस्त भी हैं, उनसे इस बारे में बात हुई। ग्लास की 14 साल की बेटी लॉरा ने अपने अल्बुकर्क हाईस्कूल में सोशल नेटवर्क का एक प्रोजेक्ट बनाया था। जब डॉ. ग्लास ने उसे देखा, तो उनकी जिज्ञासा अचानक बढ़ गई थी। प्रोजेक्ट के अनुसार स्कूली बच्चे जो कि सामाजिक तानेबाने और स्कूल बसों और कक्षाओं में एक साथ इतनी बारीकी से जुड़े रहते हैं कि महामारी के दौरान वे एक दूसरे के लए संक्रामक फैलाने के परिपूर्ण संवाहक (कंप्लीट कैरिअर) बन सकते हैं। डॉ. ग्लास ने अपनी बेटी के इस प्रोजेक्ट के माध्यम से यह पता लगाया कि इस आपसी जुड़ाव को तोड़कर ही संक्रामिक बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है। उनका अध्ययन चौंकाने वाला था। 10 हजार की आबादी वाले शहर के स्कूलों को बंद करने से सिर्फ 500 लोग संक्रमित हो सकते थे, जबकि सारे स्कूलों को खुला रखने से शहर की आधी आबादी संक्रमित होती। मुझे जब इस अध्ययन का पता चला, तो मैं चकित हो गया। डॉ. हैशे के साथ मैंने क्लास रूम और स्कूल बसों में छात्रों के बीच की दूरी (कम से कम एक मीटर) के बारे में जाना। हमने किसी भी महामारी में नुकसान को कम करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को किस तरह और किस समय लागू किया जाना चाहिए? इस बारे में गहन चर्चा की। वास्तव में यदि डॉ. ग्लास से बात न होती और उनकी बेटी ने अगर प्रोजेक्ट न बनाया होता तो हम सोशल डिस्टेंसिंग प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार न कर पाते।
- 2001 में बुश ने जान बेरी की किताब ‘द ग्रेट इन्फ्लुएंजा’ पढ़ी थी, जो 1918 के स्पैनिश फ्लू पर केंद्रित थी, इसके बाद वे ठोस नीति बनाना चाहते थे
डॉ. हैशे कहते हैं कि दरअसल, सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर देने की जार्ज बुश की कवायद 2005 की गर्मी में शुरू हुई थी। 2001 में अमेरिका पर आतंकी हमले के बाद वैश्विक आतंकवाद के प्रति आशंकित बुश ने उसी दौरान जान बेरी की किताब ‘द ग्रेट इन्फ्लुएंजा’ पढ़ी, जो 1918 के स्पैनिश फ्लू पर केंद्रित थी। उसी साल विएतनाम में बर्ड फ्लू समेत कई संक्रामिक बीमारियों ने उनकी आशंका को और बढ़ा दी, जिनमें पक्षियों और पशुओं से मनुष्य संक्रमित हो रहे थे। बुश चाहते थे कि किसी भी महामारी से बचने के लिए अमेरिका के पास ठोस रणनीति हो। 2005 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के एक कार्यक्रम में उन्होंने इस पर विस्तार से चर्चा भी की थी। उनके प्रशासन में सोशल डिस्टेंसिंग की धारणा को प्रोत्साहित किया गया। बराक ओबामा प्रशासन ने पांच साल तक इसकी समीक्षा करने के बाद 2017 में इसका डॉक्यूमेंटेशन (दस्तावेजीकरण) किया, लेकिन मौजूदा डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इस पर गौर नहीं किया। खुद ट्रंप द्वारा कोविड-19 के खतरे को कम करके आंकने और उनकी सरकार द्वारा वायरस की चेतावनी की अनसुनी करने के कारण जब खतरा बहुत अधिक बढ़ गया, और संक्रमण तथा मौत के मामले बढ़ने लगे, तब ट्रंप ने राज्यों को लॉकडाउन (सोशल डिस्टेंसिंग का एक प्रारूप) के लिए प्रोत्साहित किया। 14 साल पहले यदि हमें ‘शटअप’ न किया गया होता जो कि अपमानित करने के लिए बहुत भद्दा शब्द है। तो शायद आज अमेरिका में सोशल डिस्टेंसिंग फेडरल पॉलिसी का रूप ले चुका होता और इसे किसी भी महामारी के दौरान लागू करना लाजमी होता।
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46% लोग भीड़ वाली जगहों पर नहीं जाएंगे, 51% को हेल्थकेयर सुधरने की उम्मीद: रिपोर्ट
कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन की वजह से दुनिया में करीब 400 करोड़ लोग अपने घरों में कैद हैं। 31 लाख से ज्यादा मरीज और दो लाख से ज्यादा मौतेंहोने के बावजूद अभी तक कोरोना का कोई वैक्सीन या इलाज नहीं खोजा जा सका है। ऐसे में लॉकडाउन कब और कैसे खुलेगा, इसे लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं।
इसी मामले परग्लोबल डेटा एजेंसी स्टेटिस्टा ने कोविड-19 बैरोमीटर जारी किया है। इसके जरिए यह जानने की कोशिश की गई है कि कोरोना संकट के बाद हमारी जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा, रोजमर्रा की जिंदगी में क्या-क्या बदलाव आ सकते हैं। 49 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे भीड़भाड़ वाली जगहों पर नहीं जाएंगे। 51 फीसदी ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की उम्मीद जताई है।
बैरोमीटर अमेरिका को ध्यान में रखकर बनाया गया
रिपोर्ट के मुताबिक, यह बैरोमीटर अमेरिका को ध्यान में रखकर बनाया गया है, लेकिन इसे वैश्विक स्तर यानी दुनिया परभी लागू किया जा सकता है। 10 में 4 लोगों को उम्मीद है कि कोरोना संकट के बाद वर्क फ्रॉम होम का चलन बढ़ेगा। 50% लोगों ने कहा कि वे जब भी बाहर जाएंगे, तो बिना मास्क के नहीं जाएंगे।
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डॉक्टर ने अपने समर्पण से कई कोरोना पीड़ितों को ठीक किया, दूसरों का दर्द देखा नहीं जाता था, आखिर में जान दे दी
(अली वाटकिंस, माइकल रोथफेल्ड)अमेरिका में कई काेरोना वायरस मरीजों का इलाज कर चुकी एक डॉक्टर ने जान दे दी। मरीजों का इलाज करते-करते वो खुद इनफेक्टेड हो गईं थीं। डॉक्टर लोर्ना एम ब्रीन की मौत दरअसल,डाॅक्टरों पर कोराेना के मानसिक असर को सामने ले आई है। डॉक्टर ब्रीन न्यूयॉर्क के प्रेस्बिटेरियन एलन अस्पताल में इमरजेंसी डिपार्टमेंट की मेडिकल डायरेक्टर थीं। 200 बेड के इस अस्पताल में 170 कोरोना पीड़ित मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
डॉक्टर लोर्नाकाे कोई मानसिक बीमारी नहीं थी
डॉ ब्रीन के पिता डॉ फिलिप ने बताया कि लोर्ना ने कोरोना मरीजों के डरावने मंजर देखे। वो अपना काम पूरी लगन से कर रही थीं। कोरोना संक्रमण से ठीक होकर वह घर तो आ गईं, लेकिन कुछ दिनों बाद वापस अस्पताल जाने लगीं। फिर हमने उन्हें रोका और उसे चार्लोट्सविले ले आए। 49 साल की लोर्ना काे कोई मानसिक बीमारी नहीं थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि कुछ अजीब और अलग लग रहा है। वो निराश लग रहीं थीं। मुझे ऐसा लगा कि कुछ गलत हो रहा है। उन्होंनेमुझे बताया था कि मरीज अस्पताल के सामने एम्बुलेंस से उतारने से पहले ही दम तोड़ रहे हैं।
अस्पताल ने कहा- डॉ लोर्नाअसली हीरो
डॉक्टर लोर्ना कोरोनावायरस से लड़ रहे लोगों की अग्रिम पंक्ति में थीं। अस्पताल ने डॉ ब्रीन को एक असली हीरो बताया है। अस्पताल ने बयान में कहा-डॉ. लोर्ना ने बेहद मुश्किल वक्त पर लोगों का इलाज करते हुए उच्चतम आदर्शों का प्रदर्शन किया।यह मौत हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है, जिनके जवाब हमें तलाश करने हैं।
कोरोना ने डॉक्टर्स के लिए मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां पैदा कीं
न्यूयॉर्क-प्रेस्बिटेरियन ब्रुकलिन मेथोडिस्ट अस्पताल में क्वॉलिटीकेयर के वाइस चेयरमैन डॉक्टर लॉरेंस ए मेलनिकर कहते हैं, “कोरोनोवायरस ने पूरे न्यूयॉर्क में इमरजेंसी डॉक्टर्स के लिए मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां पैदा की हैं। वैसे डॉक्टर हमेशा हर तरह की त्रासदी से निपटने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन उन्हें खुद बीमार होने या उनकी वजह से परिवार के संक्रमित हाेने की इतनी चिंता नहीं होती, जैसे कोविड के मामले में है।”
खुशमिजाज और मिलनसार
डॉ ब्रीन के दोस्त बताते हैं कि वह न्यूयॉर्क स्की क्लब की सदस्य थीं। बहुत धार्मिक थीं।हफ्ते में एक बार बुजुर्ग लोगों की सेवा के लिए भी जाती थीं। सालसा डांस बेहद पसंद था। अपने आसपास के माहौल काे जीवंत बनाए रखती थीं। बतौर डॉक्टर जो सम्मान और मुकाम उन्होंने हासिल किया, वो तभी पाया जा सकता है, जब आप बहुत प्रतिभाशाली हों।
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