अफ्रीकी देश इथियोपिया के पहाड़ों में रहने वाली ममितू गाशे 16 साल की उम्र में गर्भवती थीं। पढ़ना-लिखना न जानने वाली ममितू पहाड़ी गांवों में मजदूरी करने जाती थीं। प्रेग्नेंसी के वक्त चार दिन तक असहनीय दर्द झेलने के बाद ममितू का बच्चा नहीं बचा।
बच्चा तो चला गया लेकिन ममितू के शरीर में रह गए भयानक जख्म। यानी ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला। मतलब एक ऐसी बीमारी जिसमें योनि और मलाशय के बीच छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं। अनियंत्रित रूप से मल-मूत्र का रिसाव होता रहता है।
दर्द और तेज दुर्गंध से जिंदगी बद से बदतर बन जाती है। नरक बन गई जिंदगी को किस्मत राजधानी अदीस अबाबा ले आई। यहां महान आस्ट्रेलियाई डॉक्टर कैथरीन हैमलिन ने उनका इलाज किया। ममितू ठीक हो गईं और डॉ. कैथरीन उनकी मेंटर, सरोगेट मां और आजीवन दोस्त बन गईं। ममितू का फिस्टुला इतना ज्यादा था कि 10 ऑपरेशन के बावजूद वो पूरी तरह ठीक नहीं हो पाईं।
डॉ. कैथरीन और उनके पति ने औरतों के लिए अभिशाप बनी इस बीमारी को देखकर इथियोपिया में फिस्टुला हॉस्पिटल खोला। डॉ. कैथरीन ऑपरेशन थियेटर में ममितू को लेकर भी जाने लगी। उनकी लगन और ललक देख कैथरीन ने उनको इलाज करना सिखाना शुरू किया। कई बार कैथरीन ने हाथ पकड़ कर ऑपरेट करना भी सीखाया।
इसी अभ्यास से ममितू इथियोपिया में फिस्टुला की टॉप सर्जन बनीं। अपने जैसी बीमार औरतों को बचाने के संकल्प ने अनपढ़ ममितू गाशे को ‘फ्यूचर ऑफ अफ्रीकन मेडिसिन’ बना दिया। ममितू को 1989 में लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन ने सर्जरी के लिए गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया। दूसरी और बीबीसी ने 2018 के प्रतिष्ठित 100 वूमेन की लिस्ट में ममितू को 32वें स्थान पर रखा। मरीजों की जरूरत को देखकर 73 की उम्र में भी वो ऑपरेशन थियेटर में मौजूद रहती हैं।
बेयरफुट सर्जन: बिना किसी विशेष पढ़ाई के हुनर से बदल रहे तस्वीर
ममितू एक ऐसे अनोखे ग्रुप का हिस्सा हैं, जिसे प्यार से लोग ‘बेयरफुट सर्जन’ कहते हैं। इसके सदस्य बिना किसी फॉर्मल ट्रेनिंग के ऑपरेशन करते हैं। वो एक एरिया के विशेषज्ञ होते हैं, जो नेचुरल स्किल और देख-देख कर इलाज करना सीखे होते हैं। इंटरनेशनल मेडिकल कम्युनिटी से भी इनको मान्यता और तारीफ मिली हुई है।
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