नए संविधान से नए नक्शे तक गलतफहमियों की शृंखला में उलझे भारत-नेपाल के रिश्ते अब सुलझने की ओर हैं। खास बात यह है कि ऐसा ‘सैन्य डिप्लोमेसी’ की बदौलत हो सका है। पड़ोसी देशों के राजनेताओं के बयानों में भले तल्खी आई हो, मगर दोनों देशों की सेनाओं के बीच रिश्तों में गर्माहट कभी कम नहीं हुई।
हाल ही में भारत के रॉ चीफ सामंत कुमार गोयल की यात्रा और अब 4 नवंबर को भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे के नेपाल दौरे को द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। नेपाल में सत्ता के उच्चपदस्थ सूत्रों की मानें तो यह नेपाली सेना और खासतौर पर सेनाध्यक्ष जनरल पूर्णचंद थापा की कोशिशों का नतीजा है।
नेपाल में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट दल की भीतरी खींचतान तक चीन का दखल होने के बावजूद वहां की सेना यह नहीं चाहती कि भारत से रिश्ते खराब करने की कीमत पर चीन से नजदीकी हासिल की जाए। भारत-चीन के मुद्दे पर नेपाल तटस्थ ही रहना चाहता है। नरवणे की यात्रा के बाद विदेश मंत्री या विदेश सचिव स्तर का दाैरा संभव हाे सकता है।
नेपाल के आर्मी चीफ कई बार दे चुके हैं संकेत
नेपाल आर्मी के एक वरिष्ठ मेजर जनरल के मुताबिक, कई संदेशों के जरिये भारत और नेपाल के सेनाध्यक्ष इस बात पर सहमत हुए कि दाेनाें देशाें काे सभी स्तर पर बातचीत फिर शुरू करना चाहिए। ताकि गलतफहमियां दूर हाें और तीसरे पक्ष काे खेल दिखाने का माैका न मिले। 2016 में भारत आ चुके और बातचीत की पहल करने वाले थापा मानते हैं कि यह स्पष्ट संदेश देने का माैका भी है कि भारत और चीन के बीच नेपाल तटस्थ है।
नेपाल दाैरे के दाैरान 5 नवंबर काे नरवणे काे राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी नेपाल आर्मी के मानद सेनाध्यक्ष सम्मान से नवाजेंगी। यह परंपरा है कि दाेनाें देशाें के सेनाध्यक्ष एक-दूसरे देश की सेना के मानद सेनाध्यक्ष हाेते हैं। इसके साथ ही बातचीत का सिलसिला शुरू हाेगा।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3jRaS0e
0 comments:
Post a Comment